शुक्रवार, 25 मई 2012

गुनगुनाती सुबह ....



सर्दियों की एक गुनगुनाती सुबह 



सर्दियों की एक गुनगुनाती सुबह में ....
एक टुकड़ा धुप जब मेरे आँगन में उतर आई ..
तो लगा, मेरी ठहरी हुई जिन्दगी में जैसे --
दबे पाँऊ झूमती हुई बयार  आ गई ...

मैं आज बहुत खुश हूँ ---
बाद -मुद्दत उनका सन्देश जो आया  ---
जो तक सुप्तावस्था थी मेरी ---
जैसे आज उसमें जान आ गई --

वो भी मुझसे प्यार करते हैं ??? 
जैसे जड़ -चेतना में मानो प्राण -प्रवाह आ गई !
मन के हर कोने  से ख़ुशी फूटने लगी अब ---
जैसे सूखे रेगिस्तान में चाहत की बरसात आ गई ---

तिनके - तिनके में समेटे थे उनकी यादों के पल ---
आज अचानक उन बीहड़ों में बहार  आ गई ...
मेरी जिन्दगी के हर पन्ने पर नाम हैं उसका 'दर्शी' 
वो लफ्ज़ चलने लगे उनमें  रवानगी आ गई .....!!!!


2 टिप्‍पणियां:

  1. मैंने अभी कुछ दिन पहले एक टुकड़ा असमान की बात की थी... अब एक टुकड़ा धुप...:) अच्छा लगा !
    जब पन्ने पे उनका नाम हो, तो फिर कहना क्या.. है न दर्शन जी:)

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  2. kabhi khud pe kabhi halat par rona aaya ...
    wo samjhe nahi isi baat pat rona aaya ...

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